शिक्षा विभाग ने भी स्कूल संचालकों के आगे घुटने टेके

शिक्षा को व्यापार मानने वाले स्कूल संचालक ही नहीं चाहते
किसी गरीब बच्चे को मिले अच्छी शिक्षा
शिक्षा विभाग ने भी स्कूल संचालकों के आगे घुटने टेके
अपने ही नियम कानूनों का नहीं करा पा रहे पालन
आरटीई में चयनित बच्चों को प्रवेश नहीं दे रहे स्कूल स्वामी
गाजियाबाद। शिक्षा के स्तर को और अधिक सुदृढ़ करने एवं हर गरीब को पढ़ने का अधिकार मिले इसके तहत प्रदेश व केंद्र सरकार कहने को तो कृत संकल्पित है लेकिन धरातल पर कुछ और ही है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार में सरकारें हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है। लेकिन नतीजा शून्य ही नजर आता है। गरीब बच्चों को अच्छी तालीम मिले इसके लिए केंद्र सरकार ने निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 की धारा (12) ग. के अंतर्गत हर मान्यता प्राप्त निजी विद्यालय में 25 प्रतिशत बच्चों का दाखिला लेने की योजना लागू की, सरकार के इस कदम से लगा था कि गरीब तबके के लोगों के बच्चे भी अच्छे स्कूलों में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। लेकिन हकीकत में शिक्षा को व्यापार समझने वाले स्कूल संचालकों ने सरकार के इस नियम को भी ताक पर रख दिया। नियमानुसार घर से 1 किलोमीटर के दायरे में आने वाले स्कूल में बच्चे को प्रवेश दिलाया जा सकता है लेकिन शिक्षा विभाग की सांठगांठ से गरीब बच्चों के लिए वार्डों का परिसीमन तय कर दिया गया। वार्डो में भी कुछ नामचीन स्कूल है लेकिन गरीब बच्चों के लिए वहां कोई गुंजाइश नहीं है। शिक्षा विभाग द्वारा चयनित बच्चों का दाखिला नहीं दिया जा रहा है। अभिभावक कभी स्कूल तो कभी बीएसए कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। शिक्षा विभाग ने मानो स्कूल संचालकों के आगे घुटने टेक दिए हैं। स्कूल संचालक जो बोलते हैं वही मान कर अभिभावकों को टरका रहे हैं। पहले 15 जुलाई तक आरटीई के बच्चों के दाखिले कराने की बात कही गई और अब जुलाई के अंत तक लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग की कार्यशैली से लगता नहीं कि बच्चों का दाखिला हो पाएगा। मजे की बात यह है कि चयनित बच्चों के अभिभावक जब स्कूल जाते हैं तो उन्हें सीट नहीं है कहकर चलता कर दिया जा रहा है शुरुआत में तो ऐसे छानबीन की जाती है जैसे मानो स्कूल बच्चे का दाखिला नहीं अभिभावक को लोन दे रहा हो।
सामाजिक परिवर्तन सेवा समिति के अध्यक्ष अनीस अंसारी का कहना है कि स्कूलों को बच्चे की जांच पड़ताल का अधिकार नहीं है। लेकिन स्कूल संचालक बच्चों का निशुल्क प्रवेश ना हो इसलिए परेशान करते हैं । उन्होंने कहा कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के यहां से जब चयनित सूची स्कूल को भेजी जाती है तो फिर बच्चों का प्रवेश क्यों नहीं कराया जाता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में कहीं ना कहीं शिक्षा विभाग की स्कूलों से मिलीभगत की बू आती है।
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